BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर -

'भाषा' शब्द संस्कृत की भाष् धातु के साथ अङ् धातु तथा आट् प्रत्ययों को लगाकर बना है। जिसका अर्थ है- वक्तृता। भाष् धातु बोलना, कहना, ध्वनि करना, उच्चारण करना आदि अर्थों में प्रयुक्त बोलने का कार्य केवल मानव ही नहीं करते, बल्कि कुत्ता, बन्दर, गाय, बिल्ली, घोड़ा हाथी आदि पशु भी करते हैं तथा तोता मैना, कोयल, कौआ आदि पक्षी भी बोलते हैं और अपने-अपने विचारों का आदन- प्रदान करते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा मानव जाति की भाषाओं से सर्वथा भिन्न है। पशु-पक्षियों की भाषा वे ही जानते हैं और समझते हैं, मानव जाति अभी तक उनकी भाषाओं को जान नहीं सकी है। यहाँ पर भाषा का तात्पर्य मानवकृत ध्वनि या कथन है। यद्यपि मानव संकेतों से भी विचारों का आदान-प्रदान करता है तथा कदाचित स्पर्श संकेत, दृष्टि संकेत, श्रव्य संकेत व भावात्मक संकेत आदि का भी प्रयोग करता है। परन्तु भाषा-विज्ञान के अन्तर्गत वे ही ध्वनि संकेत आते हैं जो सार्थक हों व मानव जाति में प्रयुक्त हों चाहे वे उच्चरित हों अथवा लिखित रूप में विद्यमान हों। अतः भाषा-विज्ञान मानव कृत सार्थक ध्वनि का ही अध्ययन करता है। इसी आधार पर भाषा की परिभाषाएँ दी गयी हैं। जो इस प्रकार हैं

भाषा की परिभाषाएँ

भाषा का सम्बन्ध मानव जाति के साथ चिरकाल से जुड़ा है। इसी कारण भाषा की परिभाषाओं पर प्राचीनकाल से ही विचार होता रहा है। भाषा के सम्बन्ध में भारतीय व पाश्चात्य विद्वानों की अवधारणाएँ इस प्रकार हैं-

(क) प्राचीन संस्कृतज्ञ विद्वानों की परिभाषाएँ

भारत में प्राचीन वैयाकरणों, साहित्यकारों, महाभाष्यकारों आदि ने भाषा के विषय में निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं-

(१) महर्षि पंतजलि के अनुसार - 'व्यक्ता वाचि वर्णात इमें व्यक्तवाचः' अर्थात् जो वाणी वर्णों द्वारा व्यक्त होती है उसे भाषा कहते हैं।

(२) अमरकोश में भाषा की परिभाषा है - 'भाषा गीद् वाग् वाणी सरस्वती अर्थात् वह वाणी जो बोली जाती है भाषा है जो सरस्वती के रूप में ज्ञात है।

(३) वैयाकरण पाणिनि के अनुसार - 'भाषा व्यक्तायां वाचि' अर्थात् व्यक्त वाणी के अर्थ में भाष धातु प्रयोग की जाती है जिससे भाषा शब्द बना है जिसका अर्थ है-

'भाष्यते व्यक्तवग्रूपेण अभिव्यज्यते इति भाषा'

अर्थात् व्यक्त वाणी के रूप में जिसकी अभिव्यक्ति की जाती है वह भाषा कही जाती है।

(४) 'शब्दकल्पद्रुम' कोश में कहा गया है - 'भाष्यते शास्त्रव्यवहारादिना प्रयुज्यते इतिभाषा' अर्थात् जो बोली जाती है तथा जिसका शास्त्र और व्यवहार में प्रयोग किया जाता है वह भाषा है।

(५) भर्तृहरि ने भाषा के विषय में कहा है - 'इतिकर्त्तव्यता लोके सर्वा शब्दव्ययाश्रया' अर्थात् भाषा शब्दों के आश्रित है जिस पर संसार का सभी व्यापार निर्भर करता है।

(६) शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है - 'वाग्वैविराट्' वचन या भाषा इतनी विराट रूपा है जो ब्रह्म के समान सर्वव्यापक है।

(७) कपिलदेव द्विवेदी मानते हैं -

स्फुटवाक्करणोपान्तो, भावाभिव्यक्ति साधकः।
संकेतितो ध्वनिप्रातः सा भाषात्युच्यते बुधैः ॥

अर्थात् भाषा इन्द्रियों द्वारा वह स्पष्ट ध्वनि संकेतों की पद्धति है जो भाव या विचारों को अभिव्यक्त करती है।

इस प्रकार संस्कृतज्ञ विद्वान् भाषा को वह व्यक्त बाणी कहते हैं जो व्यवहार में प्रयुक्त है तथा भावों या विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है।

(ख) पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषाएँ

अंग्रेजी में भाषा का पर्याय लैंग्गुएज (Language) है जो लैटिन शब्द लिंगुआ (Lingua) से बना है। लिंगुआ का अर्थ है 'जिह्वा'। सही अर्थों में लैंगुएज का मतलब होता है 'मानवकृत वाणी। पाश्चात्य विद्वानों ने इसी आधार पर भाषा की परिभाषाएँ इस प्रकार दी हैं-

(१) प्रसिद्ध विद्वान् क्रोचे के अनुसार - "भाषा उस स्पष्ट सीमित और सुगठित ध्वनि को कहते हैं जो अभिव्यंजना के लिए प्रयुक्त होती है।"

(२) ब्लाक एवं ट्रेगर की अवधारणा है - "भाषा उस व्यक्त चिह्नों की पद्धति को कहते हैं जिसके माध्यम से मानव समुदाय परस्पर व्यवहार करते हैं।"

(३) हेनरी स्वीट का भाषा के विषय में विचार है - "जिन व्यक्त ध्वनियों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति होती है उसे भाषा की परिभाषा कहा जा सकता है।"

(४) ए. एच. गार्डिनर की भाषा के विषय में धारणा है - "विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त और स्पष्ट ध्वनि संकेतों का व्यवहार किया जाता है उन्हें सामान्यता भाषा की परिभाषा कहते हैं।"

(५) ब्रिटेन के विश्वकोष में लिखा है - "भाषा व्यक्त ध्वनि चिह्नों की उस पद्धति को कहते हैं जिसके माध्यम से प्रत्येक समाज के दल एवं संस्कृति के मानने वाले सदस्य परस्पर विचारों का आदान- प्रदान करतें हैं।"

(६) प्रो. पी.डी गुणे की परिभाषा इस प्रकार है - "भाषा विचारों एवं अनुभवों के उन चिह्नों का पूर्ण योग है जिसके माध्यम से बाहरी विचारों को व्यक्त करते हैं और इच्छानुसार विचारों एवं भावों को व्यक्त करके फिर उन्हें प्रस्तुत कर सकें।'

(७) मेरिओ ए. पे. एवं फ्रैंक नेगर ने कहा है - "भाषा ध्वनि के माध्यम से विचारों के आदान- प्रदान का तरीका है अर्थात् मानव जाति के व्यवहार के लिए जिसका आदन प्रदान जिह्वा और कर्ण इन्द्रियों के माध्यम से होता है तथा जिसका अर्थ पूर्व निर्धारित एवं परम्परागत होता है, वह भाषा है।"

इस प्रकार पाश्चात्य विद्वानों ने भाषा को विचारों के आदान-प्रदान का साधन माना है, वह चिह्नों या ध्वनि संकेतों के माध्यम से होता है तथा वह ध्वनि सार्थक, स्पष्ट व सीमित होती है।

(ग) आधुनिक भारतीय भाषाविदों की परिभाषाएँ

आधुनिक भारतीय विद्वानों के समक्ष भाषा-विज्ञान का पर्याप्त प्रचलन हो चुका था। अतः उन्होंने भाषा-विज्ञान के विषय में भाषा की परिभाषाएँ सार्थक रूप में प्रस्तुत की हैं। उनमें से कतिपय परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(१) डॉ. मंगलदेव शास्त्री का वचन है - "भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा या व्यापार को कहते हैं जिसमें मनुष्य अपने उच्चारणोंपयोगी शरीरावयवों से उच्चारण किये गये वर्णात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।"

(२) डॉ. बाबूराम सक्सेना ने लिखा है - "जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है उनको समष्टि रूप में भाषा कहते हैं।

(३) डॉ. भोलानाथ तिवारी की परिभाषा है - "भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित, यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा समाज विशेष के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।"

(४) डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना का मत है - "भाषा मुख से उच्चरित उस परम्परागत, सार्थक एवं व्यक्त ध्वनि संकेतों की समष्टि को कहते हैं जिनकी सहायता से मानव आपस में विचारों एवं भावों का आदान-प्रदान करते हैं तथा जिसका वे स्वेच्छानुसार अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं।"

(५) डॉ. श्यामसुन्दर दास का कहना है- "मनुष्य- मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं।

(६) आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार की है - "जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते हैं उस यादृच्छिक रूढ़ ध्वनि संकेतों की प्रणाली को भाषा कहते हैं।"

(७) डॉ. अम्बा प्रसाद सुमन ने कहा है - " भाषा मुख से निःसृत् उच्चारण योग्य यादृच्छिक सार्थक ध्वनि प्रतीकों की एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से समाज में मनुष्य अपने भावों या विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।"

(८) डॉ. देवी शंकर द्विवेदी ने भाषा को इस प्रकार परिभाषित किया है - "भाषा यादृच्छिक वाक् प्रतीकों की वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से मानव समुदाय परस्पर व्यवहार करता है।'

इस प्रकार आधुनिक विद्वानों ने भाषा को अपने-अपने शब्दों के सूत्र में पिरोने का प्रयास किया है। यद्यपि वे भाषा के विषय में पर्याप्त जानकारी रखते थे, इस कारण उनके द्वारा की गयी भाषा की परिभाषा निरर्थक भी नहीं कही जा सकती फिर भी भाषा की सम्पूर्ण क्षमता उसकी परिभाषाओं में समाहित नहीं हो सकी है। यदि भाषा की समस्त विशेषताओं को ध्यान में रखकर भाषा की सर्वश्रेष्ठ परिभाषा की जाए तो वह इस प्रकार हो सकती है "भाषा वाग्यन्त्र से उच्चारित, यादृच्छिकं, सार्थक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है जो मानवीय विचारों के आदान-प्रदान का साधन है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं में अग्रलिखित सात बातें ध्यान देने की हैं इन्हें भाषा के तत्व कहा जा सकता है-

(१) भाषा ध्वनि मूलक होती है - भाषा में अभिव्यक्ति का आधार ध्वनियाँ होती हैं। वक्ता अपने भावों को व्यक्त करने के लिए ध्वनियों का ही प्रयोग करता है तथा श्रोता ध्वनियों के माध्यम से ही विचारों को समझ लेता है। यह विचार-विनिमय आँखों के संकेत या स्पर्श आदि अन्य साधनों के द्वारा भी हो सकता है, किन्तु वे भाषा के अन्तर्गत नहीं आते।

(२) भाषा में प्रयुक्त ध्वनियाँ, उच्चारण - ध्वनि, अवयवों से उच्चारित होती है। उच्चारण अवयव का अर्थ है ओष्ठ, जीभ, दाँत, तालु आदि वे अंग जिनके द्वारा भाषा बोलने में उच्चारण किया जाता है। यों तो ध्वनि ताली बजाकर या अनेक अन्य प्रकारों से भी उत्पन्न की जा सकती है, किन्तु भाषा के प्रसंग में जिन ध्वनियों की चर्चा की जा सकती है वे केवल उच्चारण अवयवों से ही उच्चारित होती हैं।

(३) भाषा एक व्यवस्था है - व्यवस्था के कारण ही बोलने वाला जो कुछ कहना चाहता है, सुनने वाला भाषा को माध्यम से वही ग्रहण करता है। यदि व्यवस्था न होती तो वक्ता कहता कुछ और स्रोता समझता कुछ और। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषी व्यक्ति लड़का-लड़की, 'पत्र लिख दिया', 'पत्र लिखेगा' 'लड़का गाता है', 'लड़के गाते हैं, सुनकर व्यवस्था के कारण ही समझ जाता है पहला पुलिंग है तो दूसरा स्त्रीलिंग, तीसरा भूतकाल है तो चौथा भविष्य तथा पाँचवाँ एकवचन है तो छठां बहुवचन। व्याकरण में भाषा की इसी व्यवस्था का विश्लेषण होता है। यह व्यवस्था ध्वनि, रूप, शब्द, वाक्य रचना आदि स्तरों पर होती है। यों तो भाषाओं में कुछ अवस्थाएँ भी होती हैं किन्तु व्यवस्था की तुलना में उनका अनुपात बहुत कम होता है।

(४) भाषा प्रतीकात्मक होती है - भाषा में प्रयुक्त लगभग सारे शब्द मूलतः प्रतीक होते है। आशय यह है कि ध्वनि और अर्थ का कोई सहज सम्बन्ध भाषा में नहीं होता। कुर्सी को 'कुर्सी' या मेज को 'मेज' इसलिए नहीं कहते 'क् उ र् स् ई' ध्वनियों से कुर्सी वस्तु या म् ए ज ध्वनियों से मेज वस्तु का कोई सहज रूप स्वभाविक सम्बन्ध है। इसके कहने का कारण यह है कि जिस भाषा का हम प्रयोग कर रहे हैं उनमें ये शब्द सम्बन्धित वस्तुओं के प्रतीक मान लिए गये हैं। इस तरह सभी भाषाओं के लगभग सभी शब्द (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया अव्यय) मूलतः प्रतीक होते हैं।

(५) प्रतीक यादृच्छिक होते हैं - यादृच्छिक का अर्थ है जैसी इच्छा हो। 'ये प्रतीक यादृच्छिक होते हैं' का अर्थ यह है कि विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न क्रियाओं के प्रतीक ये शब्द वस्तु या क्रिया आदि के किसी आंतरिक गुण को सोचकर नहीं बनाये गये हैं, या यों भी कह सकते हैं कि सतर्क होकर इनका निर्माण या निर्धारण नहीं किया गया है। ये शब्द यों ही बन गये और विभिन्न वस्तुओं या क्रियाओं के प्रतीक रूप में इनका निर्धारण हो गया है। इस बात का सबसे बड़ा प्रयोग यह है कि विश्व की विभिन्न भाषाओं में एक ही वस्तु या क्रिया के लिए अलग-अलग शब्द मिलते हैं। यदि यह यादृच्छिकता न होती तो एक वस्तु का सभी भाषाओं में प्रायः एक ही नाम होता है। हाँ ध्वन्यात्मक शब्दों में यादृच्छिकता एक सीमा तक ही होती है, क्योंकि उन शब्दों के निर्माण में ध्वनि के अनुकरण का आधार होता है।

इस प्रसंग में दो बातें समझने की हैं -

(क) भाषा में प्रयुक्त प्रतीकों के यादृच्छिक होने की बात भाषा के प्रारम्भिक रूप को ध्यान में रखकर कही जा रही है। प्रारम्भ में जब भाषा बनी होगी तो ऐसा रहा होगा। बाद में भाषा के माध्यम से जब मनुष्य सोचने-समझने लगा होगा तब उसमें तर्क बुद्धि का विकास हो गया होगा तो उसने शब्द निर्माण सतर्क होकर किये होंगे। ऐसे शब्दों को यादृच्छिक नहीं कह सकते। उदाहरण के लिए घुसपैठिया, नागरी प्रचारिणी सभा, तापमापी, विस्मयादिबोधक जैसे शब्द यादृच्छिक हो भी सकते हैं।

(ख) मेरे अपने विचारो में तो उस प्रारम्भिक काल में भी भाषा के सारे के सारे शब्द यादृच्छिक ही हों यह कोई आवश्यक नहीं है। कुछ शब्द यादृच्छिक हो भी सकते हैं, साथ ही कुछ ऐसे भी हो सकते हैं जिनके बनने के पीछे जाने-अनजाने समानता, साहचर्य, कार्य, ध्वनि, आदि से सम्बन्धित कोई आधार रहा होगा। वस्तुतः उस अत्यन्त प्राचीनकाल के इस निर्माण के विषय में बहुत निश्चय के साथ कुछ कहना न केवल बहुत कठिन है, बल्कि अवैज्ञानिक भी है।

(६) भाषा किसी विशेष या सीमित भाषिक समाज की होती है - हर भाषा का प्रयोग एक सीमित समाज में होता है। उसी विशेष या सीमित समाज में बोली तथा समझी जाती है। उस समाज के बाहर भाषा का कोई अर्थ नहीं है।

(७) भाषा विचार विनिमय का साधन होती है -  हर भाषा अपने समाज विशेष में विचार-विनिमय का साधन होती है। इस प्रसंग में यह बता ध्यान देने की है कि यों तो सोचने में भी एक प्रकार की अध्वन्यात्मक या सूक्ष्म भाषा का प्रयोग होता है जिसका प्रायः समाज से कोई सम्बन्ध नहीं होता और जो वैयक्तिक होती है किन्तु भाषा-विज्ञान में जिस भाषा का हम अध्ययन विश्लेषण करते हैं, वह चिन्तन की वह सूक्ष्म अध्वन्यात्मक भाषा नहीं है, अपितु समाज में विचार-विनिमय में प्रयुक्त ध्वन्यात्मक भाषा है। मानव भाषा का प्रयोग इसीलिए करता है जिससे वह अपने विचार दूसरों तक संप्रेषित कर सके तथा दूसरों के विचार ज्ञात कर सके। यदि कोई व्यक्ति बैठकर चिन्तन करता है, पाठ याद करता है, शान्त होकर प्रभु की भक्ति करता है या मौन होकर गाना गुनाता है तो यह भाषा नहीं है। भाषा का चाहे उच्चरित रूप हो या लिखित रूप हो उसका कार्य विचारों का आदन प्रदान करना ही है।

भाषा की परिभाषा के उपर्युक्त अभिलक्षणों से ज्ञात होता है कि यह भाषा की सर्वश्रेष्ठ परिभाषा है। वस्तुतः भावों द्वारा ही मानव लोक यात्रा चलाने में सक्षम होता है जैसाकि संस्कृतज्ञ दण्डी ने कहा है-

'वाचामेव प्रसादेन लोकयात्रा प्रवर्तते।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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